Space Station Batteries On Earth: इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से करीब तीन टन वजनी बैट्री धरती पर गिर रही है। इस बैट्री को स्पेस स्टेशन से अब सेवा में हटा दिया गया है। इनकी जगह पर अब नई बैट्रियों को स्पेस स्टेशन में लगाया गया है।
अंतरिक्ष स्टेशन से गिर रही है 3 टन वजनी बैट्री
हाइलाइट्स:
- अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से 2.9 टन वजनी बैट्री धरती पर गिर रही है
- इस बैट्री का इस्तेमाल अंतरिक्ष स्टेशन को रोशन करने के लिए किया जाता था
- हालांकि यह बैट्री अब पुरानी हो गई है और उसे धरती पर भेजा जा रहा है
वॉशिंगटन
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से 2.9 टन वजनी बैट्री करीब 426 किलोमीटर की ऊंचाई से धरती पर गिर रही है। इस बैट्री का इस्तेमाल अंतरिक्ष स्टेशन को रोशन करने के लिए किया जाता था। हालांकि यह बैट्री अब पुरानी हो गई है और उसे धरती पर भेजा जा रहा है। इस बैट्री को स्पेस स्टेशन के विशाल रोबॉटिक भुजा से जोड़ा गया था। इसी की मदद से अब बैट्री को धरती की ओर भेजा गया है।
अगर आप सोच रहे हैं कि यह विशालकाय बैट्री कभी भी धरती से टकरा सकती है तो डरे नहीं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन बैट्रियों को धरती की निचली कक्षा में पहुंचने में दो से 4 साल लग जाएंगे जहां अंतरिक्ष का कई और कचड़ा तैर रहा है। इसके बाद यह बैट्री धीरे-धीरे धरती की कक्षा में पहुंचेगी और नष्ट हो जाएगी। इन बैट्रियों को ऐसे समय पर अलग किया गया है जब नासा ने स्पेस स्टेशन की बैट्रियों को बदल दिया है।
NASA Mars Mission: परमाणु रॉकेट बनाने की तैयारी में नासा, 3 महीने में मंगल तक पहुंच जाएंगे इंसान

दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है।

नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।

इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।

परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।

परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।
‘सबसे बड़ा स्पेस ऑब्जेक्ट आईएसएस से भेजा गया’
बैट्रियों को बदलने की प्रकिया वर्ष 2016 में शुरू हुई थी और इस दौरान 48 निकेल हाइड्रोजन से बनी बैट्रियों की जगह पर 24 लिथियम आयन बैट्रियों को लगाया गया है। करीब 4 साल बाद वर्ष 2020 में बैट्रियां पूरी तरह से बदल दी गई हैं। इन बैट्रियों को इस तरह से ऑर्बिट में नष्ट करने की योजना नहीं थी। इन्हें पहले जापान के एच-2 ट्रांसफर वीइकल की मदद से धरती पर लाया जाना था लेकिन वर्ष 2018 में सोयूज रॉकेट के लॉन्च नहीं हो पाने की वजह से पूरी योजना को बदल दिया गया है।
अब दुनिया को बचाने के लिए ऐस्टेरॉयड से टक्कर लेगी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी धरती को बचाने के लिए एक यान छोड़ने की योजना बना रही है। इसके जरिए पृथ्वी की तरफ आ रहे एक एस्टेरॉयड का रास्ता बदला जाएगा। नासा एक यान छोड़कर उसे रोकना चाहता है जो 14,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उस एस्टेरॉयड से टकराएगा। इस बीच 1998 ओआरटू नाम का यह विशाल एस्टेरॉयड आज पृथ्वी के बेहद करीब से गुजरा। एक विशेषज्ञ ने दावा किया कि अगर 2.5 मील चौड़ा यह एस्टेरॉयड पृथ्वी से टकराता तो पूरी मानव सभ्यता को खत्म कर सकता था।

अब नासा से खतरनाक एस्टेरॉयड से धरती को बचाने के लिए एक नई योजना बनाई है। अगले साल जुलाई में नासा एक अंतरिक्ष यान छोड़ेगा जो पृथ्वी की ओर आ रहे एक एस्टेरॉयड की सतह से टकराएगा और इसकी दिशा मोड़ देगा। यह टक्कर इतनी दूर होगी कि इससे पृथ्वी को कोई नुकसान नहीं होगा। डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट (डार्ट) कुछ एस्टेरॉयड को निशाना बनाएगा। यह डायडीमॉस नाम के एस्टेरॉयड का चक्कर लगा रहे एक छोटे एस्टेरॉयड पर आधा टन का प्रोजेक्टाइल छोड़ेगा। इसे डायडीमून नाम दिया गया है।

लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के मीगन ब्रक स्याल ने कहा कि यह किसी असली एस्टेरॉयड पर काइनैटिक इम्पैक्टर टेक्नोलॉजी का परीक्षण करने का बेहतरीन मौका है। फ्रिज के आकार के इम्पैक्टर को डायडीमून पर भेजने से पहले टक्कर को कैद करने के लिए उस पर एक छोटा कैमरा लगाया जाएगा। नासा के पूर्व अंतरिक्षयात्री एड लू ने कहा कि यह उत्सुकता जगाने वाली खबर है। लू अब बी612 फाउंडेशन के प्रमुख है। यह एक गैर सरकारी संस्था है जो एस्टेरॉयड का पता लगाने और उनका रास्ता बदलने की दिशा में काम करती है। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि डार्ट एक शानदार अभियान है।’

नासा के प्लेनेटरी डिफेंस ऑफिसर लिंडसे जॉनसन ने कहा कि अभी करीब 2,078 एस्टेरॉयड को खतरनाक श्रेणी में रखा गया है। उन्होंने कहा, ‘अंतरिक्ष में सैकड़ों एस्टेरॉयड हैं। हम ऐसे एस्टेरॉयड को अलग करना चाहते हैं जिन पर लगातार नजर रखनी चाहिए।’ नासा 140 मीटर चौड़ी हर उस चीज को खतरनाक एस्टेरॉयड मानता है जिसके निकट भविष्य में पृथ्वी के 50 लाख मील के दायरे में आने की संभावना है। भले ही यह दूरी बहुत ज्यादा लगती है लेकिन एस्टेरॉयड के रास्ते में मामूली बदलाव उसे पृथ्वी की तरफ मोड़ सकता है।

जॉनसन ने कहा कि नासा ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद यह दूरी निर्धारित की है। उन्होंने कहा, ‘हमारा सबसे अहम काम उन्हें खोजना और अपनी सूची में शामिल करना है ताकि वे हमें चौंका न सकें। दो मील लंबी एक चट्टान 1990 एमयू 6 जून, 2027 को पृथ्वी के करीब से गुजरेगी। जॉनसन ने कहा, ‘हम नहीं चाहते हैं कि कोई इतनी बड़ी चीज पृथ्वी से टकराए।’ NASA के मुताबिक ऐसे करीब 22 ऐस्टरॉइड्स (उल्कापिंड) हैं जो आने वाले सालों में धरती के करीब आ सकते हैं और टक्कर की संभावनाएं हो सकती हैं।
नासा के संचार विशेषज्ञ लेह चेशिएर ने एक बयान में कहा कि यह सबसे बड़ा स्पेस ऑब्जेक्ट है जो आईएसएस से भेजा गया है। इसका वजन करीब 2.9 टन है। इससे पहले स्पेश स्टेशन से अमोनिया सर्विसिंग सिस्टम टैंक को वर्ष 2007 में भेजा गया था। इसे स्पेस वॉकर क्ले एंडर्सन ने एसटीएस-118 मिशन के दौरान अंजाम दिया था।
Source – Navbharat Times